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भूरी और धनुआ, एक ऐसी विवाहित जोड़ी, जिनकी उम्र में अंतर होने के बावजूद वे अपना जीवन मजबूरी और म़ज़दूरी के सहारे आगे बढ़ा रहे हैं। धनुआ भले ही ईंट-भट्टे पर काम करने वाला बेबस मजदूर है, पर उसे यह बर्दाश्त नहीं कि उसकी गरीबी का मज़ाक उड़ाते हुए गांव को कोई बाहुबली, साहुकार, बनिया, पंडित या डॉक्टर उसकी पत्नी पर बुरी नज़र रखे, पर सच्चाई या कड़वा सच तो यही है कि भूरी ऐसे शोषक लोगों के टारगेट पर है, जो मज़दूरों का किसी न किसी बहाने शोषण करते है। उनपर अत्याचार करते हैं। देश में ऐसे कई गांव हैं जहां इस तरह की परिस्थितियों से ही मज़दूरों का वास्ता पड़ता है, लेकिन रोज़ी-रोटी के लिए वे खामोश रहते हैं और उनकी इसी खामोशी का फायदा गांव के ताकतवर लोग उठाते हैं। धनुआ और भूरी के रूप में रघुवीर यादव और माशा पॉर भी उसी गांव का हिस्सा हैं, जहां पांच लोगों का दबदबा है। शक्ति कपूर, मुकेष तिवारी, मनोज जोषी, मोहन जोषी और सीताराम पांचाल ने गांव के मज़दूरों की नाक में दम कर रखा है और फिल्म भूरी के जरिए बेबस मज़दूरों पर उनके अत्याचारों की काली करतूतें सामने आती हैं जो यह दर्षाती हैं कि गांव का अनपढ़ और निर्धन वर्ग किस तरह ताकतवर लोगों का शोषण सह रहा है। भूरी के प्रीव्यू शो में आए रघुवीर यादव कहते हैं कि फिल्म भूरी का हिस्सा बनकर उन्हें सुकून मिला। वह जिस तरह के किरदारों को जीना चाहते हैं, धनुआ भी वैसा ही है जिसकी मजबूरी को उन्होंने महसूस किया और उसकी लाचारगी या मजबूरी को अपने किरदार में आत्मसात किया।

एस वीडियो पिक्चर और एंजल एंटरटेन्मेंट की फिल्म भूरी के निर्माता चंद्रपाल सिंह यह भी कहना चाहते हैं कि ईंट-भट्टों पर काम करने वाली मज़दूर औरत और प्रकृति से खिलवाड़ करोगे, तो अंत विनाषक ही होगा। ईंटे बनाने के लिए मिट्टी की उपरी सतह को खुरचा जाता है। उसी मिट्टी को ईंट रूपी पत्थर का रूप दिया जाता है। आज उन्हीं ईंटों से कंक्रीट के जंगल बनाए जा रहे हैं जो प्रकृति के साथ खिलवाड़ ही है। अगर ऐसा ही होता रहा तो आक्सीजन कहां से मिलेगी। औरत भी मिट्टी की तरह पिसती रहती है। सबकुछ सहती रहती है। मिट्टी का ही प्रतीकात्मक रूप है भूरी जिसपर मनहूसियत का धब्बा लगा है। वह 24 साल की है जिसकी शादी नहीं हुई। वह बंजारे की बेटी है जिसकी शादी से पहले ही होने वाले चार पति भाग गए। पांचवा पति उसकी ज़िंदगी में किस तरह आता है और वो कौन है! क्या भूरी शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाती है। यह फिल्म ऐसे पीड़ित वर्ग का ही एक आईना है। फिल्म के निर्देशक जसबीर भट्टी ने इस फिल्म के जरिए निर्देशन पर अपनी पकड़ साबित की है। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूज़िक प्रभावकारी है, जो गांव के माहौल के अनुसार तैयार किया गया है। फिल्म के संगीत से भी दर्शक खुद को आसानी से जोड़ लेते हैं क्योंकि गांव के ठेठ देसीपन को संगीत का ही देसी माधुर्य ऐसा जोड़ता है जो फिल्म की धार को प्रभावित नहीं होने देता। कुल मिलाकर फिल्म शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाती नज़र आती है। फिल्म में आदित्य पंचौली को पुलिस अधिकारी के रूप में दिखाया गया है, जो दबंग अंदाज़ में सामने आते हैं। अभिनेत्री कुनिका भी अपने सशक्त अभिनय से प्रभावित करती है। रघुवीर यादव ने इस फिल्म के जरिए दोबारा यह साबित किया है कि खास तरह के सिनेमा में उन जैसे खास लोग ही अपना दमखम दिखा पाते हैं। अभिनेत्री माशा पॉर ने अपने अप्रतिम सौंदर्य और असरदार अभिनय में सही संतुलन बिठाया है। मनोज जोशी, मोहन जोशी, मुकेश तिवारी और शक्ति कपूर ने भी अपने किरदारों के साथ पूरा न्याय किया।

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